Memorandum to the President of India to Take Necessary Steps to Protect the Constitutional: अम्बिकापुर :माननीय महोदया, भारत एक प्रजातांत्रिक देश है और यहाँ के सब नागरिकों को एक-बराबर संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं जिसकी रक्षा करने का कर्त्तव्य केंद्र एवं राज्य सरकारों का है।
छत्तीसगढ़ राज्य का वर्त्तमान परिवेश यह साबित करने के लिये पर्याप्त है कि यहाँ के गरीब, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक भय एवं आतंक के साये में जी रहे हैं।



Memorandum to the President of India to Take Necessary Steps to Protect the Constitutional
दुर्ग में दो नन्हें एवं तीन अन्य के साथ जिन लोगों द्वारा अमानुषिक बर्ताव किया गया वह निन्दनीय है। धर्मांतरण एवं मानव तस्करी के आरोप पूरी तरह बेबुनियाद एवं पूर्वाग्रह से ग्रसित है। सारी दुनिया देख और समझ रही है।

महोदया, यह आश्चर्य की बात है कि कुछ कट्टरपंथी हिन्दू संगठन कानून व्यवस्था अपने हाथ में लिये हुए हैं। प्रशासन उनके खिलाफ कुछ नहीं करता। उदाहरण स्वरूपः दुर्ग की घटना में पीड़ितों के साथ कट्टरपंथी लोगों की बर्बरता स्पष्ट झलक रही है। दोषियों पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाये।
छ0ग0 के जिम्मेदार व्यक्ति यह दुहराते नहीं थकते कि आदिवासियों से बड़ा और कोई हिन्दू नहीं। ऐसा लगता है कि उन्हें आदिवासियों के इतिहास की जानकारी नहीं है। उत्तराधिकार अधिनियम 2(2), हिन्दू दत्तक ग्रहण 2(2) एवं हिन्दू मैरिज एक्ट 2(2), के अनुसार उक्त कानून आदिवासियों के साथ लागू नहीं होते, 30 जुलाई 2021- प्राण मांझी (2000) 8 SCC 587 में कहा गया है कि यदि (कोई) आदिवासी हिन्दू बन गये हैं तो उनके साथ हिन्दू विवाह कानून लागू होगा (अन्य आदिवासियों के साथ नहीं)। भारतीय संविधान, धारा 25 के तहत् धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार सब के लिये है, कुछ लोगों के लिये नहीं।

हमारे देश के लगभग 2 करोड़ लोग विदेशों में निवास करते हैं। उन्हें मालूम है कि अनेकों विदेशी मूल के लोग भी हिन्दू भक्ति को अपना रहे हैं। वहाँ उनके लिये अन्य धर्म या भक्ति को अपनाने में कोई व्यवधान नहीं है। यहाँ तो मानव अधिकार का खुला उल्लंघन हो रहा है। एक धर्म विशेष को अपनाये तो ठीक अन्य धर्म अपनाये तो गलत।
इस समय प्रदेश में धर्मांतरण के खिलाफ और सख्त कानून लाने की चर्चा जोरों पर है। पुनः यह मानव अधिकार का खुला उल्लंघन है। यदि जोर जबरदस्ती, प्रलोभन या भय के कारण धर्मांतरण हो उसके लिये कानूनी कार्रवाई का प्रावधान तो उपलब्ध है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा विश्व के आदिवासियों के संरक्षण हेतु प्रदत्त अधिकारः
अनुच्छेद 2. आदिवासी, अन्य सभी लोगों की भांति स्वतंत्र और बराबर हैं तथा उन्हें अपने अधिकारों, विशेषकर उनके आदिवासी होने के कारण मिले अधिकारों का इस्तेमाल करने में किसी भी तरह के भेदभाव से मुक्त रहने का अधिकार है।
अनुच्छेद 2.2. राज्य ऐसे प्रभावी तंत्र उपलब्ध करायेंगे जो निम्नलिखित की रोकथाम / निराकरण करेंगे :
(क) ऐसा कोई कार्य जिसका उद्देश्य अथवा परिणाम उन्हें विशिष्ट पहचान या सांस्कृतिक मूल्यों या जनजातीय पहचान से वंचित करना हो।
(घ) किसी भी प्रकार का जबरन विलय या समन्वय।
(ङ) उनके विरुद्ध नस्ल आधारित अथवा जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देने या उकसाने के इरादे से किसी भी तरह का दुष्प्रचार।
महोदया, कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ राज्य के गरीबों, आदिवासियों एवं अल्पसंख्यकों को उनके संवैधानिक, धार्मिक एवं मानव अधिकारों से वंचित करने की खतरनाक साजिश रची जा रही है। समय रहते इसके खिलाफ कारगर कदम उठाने के लिये ऑल चर्चेस यूनाइटेड फ्रंट, के बैनर तले सरगुजा, बलरामपुर, सूरजपुर, बैकुंठपुर और एम०सी०बी० जिलों के अल्पसंख्यक एवं अन्य पीड़ितजन आप से करबद्ध निवेदन करते हैं।
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