Jheeram Ghati Massacre : बस्तर : 25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की झीरम घाटी में एक बहुत बड़ा हमला हुआ था। उस दिन कांग्रेस पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता परिवर्तन यात्रा निकाल रहे थे। यात्रा के दौरान नक्सलियों ने उनके काफिले पर अचानक हमला कर दिया। इस हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बड़े नेता नंदकुमार पटेल, बस्तर के लोकप्रिय नेता महेंद्र कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार समेत 33 लोगों की जान चली गई। यह हमला इतना बड़ा था कि पूरे देश में सनसनी फैल गई थी।

Jheeram Ghati Massacre कैसे हुआ हमला?
नक्सलियों ने इस हमले की तैयारी महीनों पहले से शुरू कर दी थी। उन्होंने जंगल में छिपकर रास्ते की निगरानी की, सुरक्षा बलों की आवाजाही पर नजर रखी, और जगह-जगह बम (आईईडी) लगा दिए। जैसे ही कांग्रेस नेताओं का काफिला झीरम घाटी के पास पहुंचा, सबसे आगे चल रही गाड़ी को बम से उड़ा दिया गया। इसके बाद नक्सलियों ने चारों तरफ से गोलियां बरसाईं। जो लोग भागने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें भी निशाना बनाया गया। यह हमला बहुत ही सुनियोजित और खतरनाक था।

शुरुआत में ऐसा कहा गया कि इस हमले के पीछे नक्सली कमांडर हिडमा का हाथ है। लेकिन बाद में कुछ आत्मसमर्पित नक्सलियों ने बताया कि इस पूरी साजिश का मास्टरमाइंड देवजी नाम का नक्सली था। उसके साथ जयलाल और सिरदार जैसे बड़े नक्सली भी शामिल थे। हमले के बाद नक्सलियों ने जंगल में बैठक कर जश्न भी मनाया था।
12 साल बाद हालात कैसे बदले?
इस घटना को 12 साल हो चुके हैं। पीड़ित परिवार आज भी न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं। हालांकि, इन सालों में सरकार और सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चलाए हैं। कई बड़े नक्सली मारे गए हैं या पकड़े गए हैं। हाल ही में झीरम घाटी हमले में शामिल कुछ नक्सलियों का भी सफाया हुआ है। इससे पीड़ित परिवारों को थोड़ी राहत और न्याय की उम्मीद मिली है।

झीरम घाटी हत्याकांड ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को हिला कर रख दिया था। कांग्रेस पार्टी हर साल इस दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाती है और शहीद नेताओं को याद करती है। इस घटना ने राज्य के लोगों को बहुत दुखी किया, लेकिन अब नक्सलवाद कमजोर पड़ता दिख रहा है और लोग उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही पीड़ित परिवारों को पूरा न्याय मिलेगा।
झीरम घाटी हत्याकांड छत्तीसगढ़ के इतिहास का सबसे दुखद और बड़ा हमला था। 12 साल बाद भी इसकी यादें ताजा हैं, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। नक्सलियों का असर कम हो रहा है और न्याय की उम्मीद बढ़ रही है। पीड़ित परिवारों के लिए यह साल उम्मीदों भरा है कि उन्हें जल्द ही इंसाफ मिलेगा।